—ग़ज़ल –सतीश गुलाटी—
मैं सफ़र में था,सफ़र में ही अजब किस्सा हुआ
रास्ते मे मिल गया था वक्त कुछ ठहरा हुआ
अनकही बातों को लेकर आज भी झगड़ा हुआ
अनसुनी बातों को ले कर कल भी हंगामा हुआ
देखने में तो बहुत खुशहाल आता है नजर
जबकि हर इक शख़्स मुझको लग रहा टूटा हुआ
ये कहीं पर जलज़ला होने के ही संकेत हैं
आज के इन्सान में जो जब्त है पनपा हुआ
भीड़ गुस्से के भवंडर मे बदलने लग पडी
भीड़ को जो देखता था और भी तन्हा हुआ
लोग पहले ही घरों में कर दिए थे नजरबंद
जबकि अख़बारों ने लिखा था, बड़ा जलसा हुआ
कल पुराने घर की सारी छत टपकती देख कर
फिर मैं यादों में नहाया, फिर तरोताज़ा हुआ
कलतलक इक झील बन जाएगी इस को रोक लो
एक झरना सा तेरी आँखों में जो उतरा हुआ
शहर काफी जल चुके हैं, गांव खाली हो रहे,
आप कैसे कह रहे हैं, जो हुआ अच्छा हुआ ?
आपके ग़र शहर में होता तो दंगे भड़कते
यह गनीमत है, हमारे शहर में ऐसा हुआ
ज़हन के शायद किसी कोने में ही मौजूद थी
एक फ़ाइल जिसमें सब कुछ मिल गया रखा हुआ
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Mr. Gulati is a famed Punjabi poet and a reputed publisher(Chetna Prakashan) as well .His father Mr. Shah Chaman was also a famous novelist & a translator.
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Chetna Prakashan
Ludhiana, India
‘CHETNA PARKASHAN is the largest Punjabi language publisher of progressive literature.’
Year Established: 1998
Publishes: Progressive literature
Languages: Punjabi, Hindi, English and Urdu
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