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Wake up ! Shed sleep ! Wake up !

जागो ! नींद छोड़ दो !

#जापान में कोई दो सौ वर्ष पहले एक बहुत अद्भुत संन्यासी हुआ। उस संन्यासी की एक ही शिक्षा थी कि जागो! नींद छोड़ दो। उस संन्यासी की खबर जापान के सम्राट को मिली। सम्राट जवान था, अभी नया नया राजगद्दी पर बैठा था। उसने उस फकीर को बुलाया। और उस फकीर से प्रार्थना की, मैं भी जागना चाहता हूं। क्या मुझे जागना सिखा सकते है?

उस फकीर ने कहा, सिखा सकता हूं,लेकिन राजमहल में नहीं, मेरे झोपड़े पर आ जाना पड़ेगा! और कितने दिन में सीख पाएंगे, इसका कोई निश्चय नहीं है । यह एक-एक आदमी की तीव्रता पर निर्भर करता है; एक-एक आदमी के असंतोष पर निर्भर करता है कि वह कितना प्यासा है कि सीख सके । तुम्हारी प्यास कितनी है; तुम्हारी अतृप्ति कितनी है; तुम्हारी डिसकटेंट कितना है; तो तुम सीख सकते हो । और उस मात्रा में निर्भर होगा कि तुम कितने जल्दी सीख सकते हो । वर्ष लग सकते हैं, दो वर्ष लग सकते हैं, दस वर्ष लग सकते हैं । और मेरी शर्त है कि बीच से कभी आने नहीं दूंगा; अगर सीखना हो तो पूरी तैयारी करके आना । और साथ में यह भी बता दूं कि मेरे रास्ते अपने ढ़ंग के हैं । तुम यह मत कहना कि यह मुझसे क्या करवा रहे हो, यह क्या सिखा रहे हो! मेरे ढ़ंग हैं सिखाने के ।

राजकुमार राजी हो गया और उस फकीर के आश्रम पहुंच गया। दूसरे दिन सुबह उठते ही उस फकीर ने कहा कि आज से तुम्हारा पहला पाठ शुरू होता है । और पहला पाठ यह है कि में दिन में किसी भी समय तुम्हारे ऊपर लकड़ी की नकली तलवार से हमला करूंगा । तुम किताब पढ़ रहे हो, मैं पीछे से आकर नकली तलवार से तुम्हारे ऊपर हमला कर दूंगा । तुम बुहारी लगा रहे हो, मैं पीछे से आकर हमला कर दूंगा । तुम खाना खा रहे हो, मैं हमला कर दूंगा । दिन भर होश से रहना! किसी भी वक्त हमला हो सकता है । सावधान रहना! अलर्ट रहना! किसी भी वक्त मेरी तलवार-लकड़ी की तलवार — तुम्हें चोट पहुंचा सकती है।

उस राजकुमार ने कहा कि मुझे तो जागरण की शिक्षा के लिए बुलाया गया था,और यह क्या करवाया जा रहा है ?

मैं कोई तलवारबाजी सीखने नहीं आया हूं,लेकिन गुरु ने पहले ही कह दिया था कि इस मामले में तुम कुछ पूछताछ नहीं कर सकोगे । मजबूरी थी । शिक्षा शुरू हो गई, पाठ शुरू हो गया । आठ दिन में ही उस राजकुमार की हड्डी-पसली सब दर्द देने लगी,हाथ-पैर सब दुखने लगे । जगह-जगह से चोट! किताब पढ़ रहे हैं,हमला हो जाए । रास्ते पर घूमने निकला है, हमला हो जाएगा । दिन में दस पच्चीस बार कहीं से भी हमला हो जाएगा ।

लेकिन आठ दिन में ही उसे पता चला कि धीरे-धीरे एक नये प्रकार का होश, एक जागृति उसके भीतर पैदा हो रही है । वह पूरे वक्त अलर्ट रहने लगा, सावधान रहने लगा । कभी भी हमला हो सकता है! किताब पढ़ रहा है, तो भी उसके चित्त का एक कोना जागा हुआ है कि कहीं हमला न हो जाएं! तीन महीने पूरे होते-होते, किसी भी तरह का हमला हो, वह रक्षा करने में समर्थ हो गया । उनकी ढाल ऊपर उठ जाती । पीछे से भी गुरु आए,तो भी ढाल पीछे उठ जाती और हमला सम्हल जाता । तीन महीने बाद उसे चोट पहुंचाना मुश्किल हो गया । कितने ही अनअवेयर, कितना ही अनजान हमला हो, वह रक्षा करने लगा । चित्त राजी हो गया, चित्त सजग हो गया ।

उसके गुरु ने कहा कि पहला पाठ पूरा हो गया; कल से दूसरा पाठ शुरू होगा । दूसरा पाठ यह है कि अब तक जागते में मैं हमला करता था, कल से नींद में भी हमला होगा, सम्हल कर सोना! उस राजकुमार ने कहा, गजब करते हैं आप! कमाल करते हैं! जागने तक गनीमत थी, मैं होश में था, किसी तरह बचा लेता था । लेकिन नींद में तो बेहोश रहूंगा!

उसके गुरु ने कहा, घबड़ाओं मत; मुसीबत नींद में भी होश को पैदा कर देती है । संकट, क्राइसिस नींद में भी सावधानी को जन्म दे देती है । उस बूढ़े ने कहा,फिकर  मत करो । तुम फिकर छोड़ो । तुम तो नींद में भी होश रखने की कोशिश करना । और लकड़ी की तलवार से नींद में हमले शुरू हो गए । रात में आठ-दस दफा कभी भी चोट पड़ जाती है । एक दिन, दो दिन,आठ-दस दिन बीतते फिर हड्डी-पसली दर्द करने लगी।

लेकिन तीन महीने पूरे होते-होते राजकुमार ने पाया कि वह बूढ़ा ठीक कहता है । नींद में भी होश जागने लगा ।

सोया रहता, और भीतर कोई जागता भी रहता और स्मरण रखता कि हमला हो सकता है! हाथ रात में, नींद में भी ढाल को पकड़े रहता । तीन महीने पूरे होते-होते गुरु का आगमन, उसके कदम की धीमी सी अवाज भी उसे चौंका देती और वह ढाल से रक्षा कर लेता । तीन महीने पूरे होने पर नींद में भी हमला करना मुश्किल हो गया । अब वह बहुत प्रसन्न था । एक नय तरह की ताजगी उसे अनुभव हो रही थी । नींद में भी होश था । और कुछ नये अनुभव उसे हुए । पहले तीन महीने में,जब वह दिन में भी जागने की कोशिश करता था, तो

जितना-जितना जागना बढ़ता गया, उतने-उतने विचार कम होते गए । विचार नींद का हिस्सा है । जितना सोया हुआ आदमी, उतने ज्यादा विचार उसके भीतर चक्कर काटने हैं । जितना जागा हुआ आदमी, उतना भीतर साइलेंस और मौन आना शुरू हो जाता है, विचार बंद हो जाते हैं ।

पहला तीन महीने में उसे स्पस्ट दिखाई पड़ा था कि

धीरे-धीरे विचार कम होते गए, कम होते गए,

फिर धीरे-धीरे विचार समाप्त हो गए । सिर्फ सावधानी रह गई, होश रह गया,अवेयरनेस रह गई । ये दोनों चीजें एक साथ कभी नहीं रह सकती; या तो विचार रहता है, या होश रहता है। विचार आया कि होश गया । जैसे बादल घिर जाएं आकाश में तो सूरज ढंक जाता है, बादल हट जाएं तो सूरज प्रकट हो जाता है । विचार मनुष्य के मन के बादलों की तरह घेरे हुए हैं । विचार घेर लेते हैं, होश दब जाता है । विचार हट जाते हैं,होश प्रकट हो जाता है ।

जैसे बादल को फोड़ कर सूरज दिखाई पड़ने लगता है । पहले तीन महीने में उसे अनुभव हुआ था कि विचार क्षीण हो गए, कम हो गए । दूसरे तीन महीने में एक और नया अनुभव हुआ… रात में जैसे-जैसे होश बढ़ता गया,

वैसे-वैसे सपने ड्रीम्स कम होते गए । जब तीन महीने पूरे होते-होते जागरण रात में भी बना रहने लगा, तो सपने बिल्कुल विलीन हो गए, नींद स्वप्नशून्य हो गई । दिन विचार शून्य हो जाए,रात स्वप्नशून्य हो जाए,तो चेतना जागी ।

तीन महीने पूरे होने पर उसके बूढ़े गुरु ने कहा,दूसरा पाठ पूरा हो गया । उस राजकुमार ने कहा, तीसरा पाठ क्या हो सकता है ? जागने का पाठ भी पूरा हो गया, नींद का पाठ भी पूरा हो गया । उसके गुरु ने कहा, अब असली पाठ शुरू होगा । कल से मैं असली तलवार से हमला शुरू करूंगा । अब तक लकड़ी की तलवार थी । उस राजकुमार ने कहा, आप क्या कह रहे हैं ? लकड़ी की तलवार तक गनीमत थी, चूक भी जाता था तो भी कोई खतरा नहीं था, असली तलवार!

गुरु ने कहा कि जितना चैलेंज, जितनी चुनौती चेतना के लिए खड़ी की जाए, चेतना उतनी ही जागती है । जितनी चुनौती हो चेतना के लिए, चेतना उतनी सजग होती है ।

तुम घबराओ मत । असली तलवार तुम्हें और गहराईयों तक जगा देगी ।

और दूसरे दिन सुबह से असली तलवार से हमला शुरू हो गया। सोच सकते हैं आप, असली तलवार का ख्याल ही उसकी सारी चेतना की निद्रा को तोड़ दिया होगा । भीतर तक, प्राणों के अंतस तक वह तलवार का स्मरण व्याप्त हो गया । तीन महीने गुरु एक भी चोट नहीं पहुंचा सका असली तलवार से । लकड़ी की तलवार की उतनी चुनौती न थी । असली तलवार की चुनौती अंतिम थी । एक बार चूक जाए तो जीवन समाप्त हो जाए ।

तीन महीने में एक भी चोट नहीं पहुंचाई जा सकी ।

और तीन महीने में उसे इतनी शांति, इतने आनंद, इतने प्रकाश का अनुभव हुआ उस युवक राजकुमार को कि उसका जीवन एक नये नृत्य में, एक नये लोक में प्रवेश करने लगा । आखिरी दिन आ गया तीसरे पाठ का, और गुरु ने कहा कि कल तुम्हारी विदा जाएगी तुम उत्तीर्ण हो गए । क्या तुम नहीं जाग गए ? उस युवक ने गुरू के चरणों में सिर रख दिया । उसने कहा, मैं जाग गया हूं ।

और अब मुझे पता चला कि मैं कितना सोया हुआ था!

जो आदमी जीवन भर बीमार रहा हो, वह धीरे-धीरे भूल ही जाता है कि मैं बीमार हूं । जब वह स्वस्थ होता है तभी पता चलता है कि मैं कितना बीमार था । जो आदमी जीवन भर सोया रहा है … और हम सब सोए रहे हैं;

हमे पता भी नहीं चलता कि ओह! यह सारा जीवन एक नींद थी।

श्री अरविंद ने कहा है, जब सोया हुआ था तो जिसे मैंने प्रेम समझा था, जाग कर मैंने पाया वह असत्य था, वह प्रेम नहीं था। जब मैं सोया हुआ था तो जिसे मैंने प्रकाश समझा, जाग कर पाया कि वह अंधकार से भी बदतर अंधकार था, वह प्रकाश था ही नहीं । जब मैं सोया हुआ था तो जिसे मैंने जीवन समझा था, जाग कर मैंने पाया वह तो मृत्यु थी, जीवन तो यह है ।

उस राजकुमार ने चरणों में सिर रख दिया और कहा कि अब मैं जान रहा हूं कि जीवन क्या है । कल क्या मेरी शिक्षा पूरी हो जाएगी ?

गुरु ने कहा, कल सुबह मैं तुम्हें विदा कर दूंगा ।

सांझ की बात है, गुरू बैठ कर पढ़ रहा है एक वृक्ष के नीचे किताब । और कोई तीन सौ फीट दूर वह युवक बैठा हुआ है । कल सुबह वह विदा हो जाएगा । इस छोटी सी कुटी में, इस बूढ़े के पास, उसने जीवन की संपदा पा ली है । तभी उसे अचानक ख्याल आया यह बूढ़ा नौ महीने से मेरे पीछे पड़ा हुआ है: जागने-जगाने, जागना-जागना, सावधान-सावधान यह बूढ़ा भी इतना सावधान है या नहीं ? आज मैं भी इस पर उठ कर हमला करके क्यों न देखूं! कल तो मुझे विदा हो जाना है। मैं भी तलवार ऊठाऊं इस बूढ़े पर, हमला करके पीछे से देखूं, यह खुद भी सावधान है या नहीं ?

उसने इतना सोचा ही था कि वह बूढ़ा वहां दूर से चिल्लाया कि नहीं-नहीं, ऐसा मत करना। मैं बूढ़ा आदमी हूं, भूल कर भी ऐसा मत करना । वह युवक तो अवाक रह गया! उसने सिर्फ सोचा था । उसने कहा, मैंने लेकिन अभी कुछ किया नहीं, सिर्फ सोचा है । उस बूढ़े ने कहा, तू थोड़े दिन और ठहर । जब मन बिल्कुल शांत हो जाता है, तो दूसरे के विचारों की पग ध्वनि भी सुनाई पड़ने लगती है। जब मन बिल्कुल मौन हो जाता है, तो दूसरे के मन में चलते हुए विचारों का दर्शन भी शुरू हो जाता है।

जब कोई बिल्कुल शांत हो जाता है, तब सारे जगत में, सारे जीवन में चलते हुए स्पंदन भी उसे अनुभव होने लगते हैं । इतनी ही शांति में प्रभु चेतना का अनुभव अवतरित होता है । वह राजकुमार दूसरे दिन विदा हो गया होगा । एक अनूठा अनुभव लेकर वह उस आश्रम से वापस लौटा ।

  ओशो ~  समुंद समाना बूंद में — ( प्रवचन – 07 )

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